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( यह कुछ शव्द उन दिनों के है जिन दिनों में चीन से हमारे भारत मे कोरोना 2020 मार्च में आया था तभी मोदी जी ने पूरा भारत 21 दिनों के लिए बंद कर दिया था ताकि हमारे भारत को ज्यादा नुकसान न हो, घर पर खाली थे तभी कुछ शव्द याद आ गए ।)


"उन किरदारों के लिए ही तालियां परदा गिरने के बाद भी बजती रहती है"

"बन्द घरों में कितना सीखा

कैसे जाऊँ भूल

ना कोई बस्ता और

ना कोई स्कूल"

बालकनी में में कैदी सा बैठा इन दिनों आसमाँ में उड़ते चहचहाते पक्षियों को देखता हूँ तो देखता ही रह जाता हूँ।

प्रकृतिवादी सदियों से सीख दी रहे है, आदमी के मनोरंजन के लिए चिड़ियाघर मत बनाओ। आज चन्द दिनों की कैद से सब समझ आ गया कि वे ऐसा क्यों बोलते थे।

दुनियां के चौधरी बने 'अंकल सैम' के चेहरे पर चिन्ता की लकीरों से स्पष्ट हो गया अंकल ऐसे ही दुनियां को व्यर्थ की चौधराहट से हांक रहे थे।

'पेट भर खाना' और 'भर पेट खाना' वाला मुहावरा अब जाकर समझ आया। इटालियन पिज़्ज़ा और चायनीज मंचूरियन पर दाल रोटी की सत्ता अब जाकर स्थापित हुई है। अब घर की दाल मुर्गी के बराबर नहीं, बहुत बड़ी लगती है।

असली हीरो को ढूँढने कहाँ कहाँ नहीं गया अब तक। अब कुछ नज़र आये हैं। परदा गिरने के बाद भी तालियां किनके लिए बजती हैं अब समझ आया।

जरूरी नहीं है कि देश की सेवा के लिए सारे लोग संसद या विधानसभा में ही हो। बहुत सारे 'हीरोज' तन, मन और धन की थाती लेकर गुमनाम गाँव, गलियों में भी बैठे हैं और कुछ बड़े थे पर हमारे अनुमान से और बड़े निकले।

मन्दिर, मस्जिद गिरजे, गुरुद्वारे के द्वार भी जब आपके लिए बन्द हो जाये तब कौनसे द्वार खटखटाने चाहिए इसका इल्म इंसान को होना चाहिए।

कुछ लोगों ने कीमतें बढ़ा कर खुद की कीमतें गिरा दी। वक्त तो यह भी निकल जायेगा साहब, लेकिन जब हम घरों से निकलेंगे कुछ लोग हमेशा के लिए दिलों में कैद होंगे और हमें उनको दिलों में रखने का फक्र होगा।

प्रकृति कितनी महान है। चन्द दिनों में खुद ने ही नदी, तालाब समन्दर, हवा और वनस्पति सब को कितना संवार दिया। इन्सान बड़े बड़े जतन करके आज तक यह नहीं कर पाया।

जब आधी दुनियां घरों की कोटरों में बैठकर सहमी सी बाहर टुकुर टुकुर झाँकती है ना तब समझ आता है कि हमारी उछलकूद पर भी कोई निगरानी है।

बिना स्कूल गये बहुत सीखा है इन दिनों।इस दौर के कुछ किरदारों का पोस्टर जेहन में हमेशा हमेशा चस्पा रहेगा।

कुछ लोग, बाद अपने,

छोड़ जाते हैं।

चीजें नहीं,

बातें।

बाद के लोग काट देते हैं

जिनके सहारे,

अँधेरी से अँधेरी

रातें।

लेखक:

आलोक वर्मा ( कृषि एक्सपर्ट ) 

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